अमेरिकी एंटीट्रस्ट मुकदमे: क्या गूगल को तोड़ा जाएगा?

अमेरिकी एंटीट्रस्ट मुकदमे: क्या गूगल को तोड़ा जाएगा?

गूगल का साम्राज्य खतरे में: क्या अमेरिकी सरकार तकनीकी दिग्गज को तोड़ देगी? एकाधिकार के मुकदमों का एक विस्तृत विश्लेषण

आज की डिजिटल दुनिया में, गूगल सिर्फ एक कंपनी नहीं, बल्कि एक क्रिया है। हम जानकारी खोजने के लिए "गूगल करते हैं," दिशा-निर्देश के लिए गूगल मैप्स का उपयोग करते हैं, और संचार के लिए जीमेल पर निर्भर हैं। एंड्रॉइड, क्रोम, यूट्यूब और गूगल प्ले स्टोर जैसे इसके नौ उत्पादों में से प्रत्येक के एक अरब से अधिक उपयोगकर्ता हैं। यह व्यापक उपस्थिति गूगल को हमारे डिजिटल जीवन का एक अभिन्न अंग बनाती है। लेकिन इस प्रभुत्व की नींव अब संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर में अभूतपूर्व कानूनी चुनौतियों का सामना कर रही है, जो न केवल गूगल के भविष्य को, बल्कि पूरे इंटरनेट के ताने-बाने को फिर से आकार दे सकती है।

हाल के वर्षों में, गूगल, जो कभी एक प्रिय तकनीकी नवप्रवर्तक था, अब सरकारों और नियामकों के लिए जांच का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। कंपनी पर अपने विशाल बाजार प्रभुत्व का दुरुपयोग करने, प्रतिस्पर्धा को खत्म करने और एक ऐसे डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने का आरोप है जो नवाचार को रोकता है और उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुँचाता है। यह लड़ाई अब अमेरिकी अदालतों में दो ऐतिहासिक एंटीट्रस्ट मुकदमों के साथ चरम पर पहुँच गई है: एक इसके खोज एकाधिकार पर केंद्रित है और दूसरा इसके विज्ञापन प्रौद्योगिकी (एडटेक) साम्राज्य पर।

5 अगस्त, 2024 को, एक अमेरिकी न्यायाधीश ने एक ऐतिहासिक फैसले में गूगल को ऑनलाइन खोज में अवैध रूप से एकाधिकार बनाए रखने का दोषी पाया - यह एक चौथाई सदी में किसी बड़ी तकनीकी कंपनी के खिलाफ सरकार की पहली बड़ी एंटीट्रस्ट जीत है। इस फैसले ने गूगल के व्यवसाय मॉडल की नींव हिला दी है और अब कंपनी को तोड़ने (breakup) की संभावनाओं पर एक गंभीर बहस छेड़ दी है। इसके तुरंत बाद, 9 सितंबर, 2024 को, गूगल के एडटेक कारोबार को लेकर एक और बड़ा मुकदमा शुरू हुआ, जिसमें न्याय विभाग (DOJ) गूगल के विज्ञापन साम्राज्य को तोड़ने की माँग कर रहा है।

ये मामले केवल गूगल के बारे में नहीं हैं। वे एक बड़े सवाल का प्रतिनिधित्व करते हैं: हम डिजिटल युग में शक्ति को कैसे नियंत्रित करते हैं? क्या कुछ कंपनियों को उन बाजारों पर शासन करने की अनुमति दी जानी चाहिए जिन पर हम सभी निर्भर हैं? इन मुकदमों के परिणाम यह निर्धारित करेंगे कि आने वाले दशकों में इंटरनेट कैसा दिखेगा, पत्रकारिता कैसे जीवित रहेगी, छोटे व्यवसाय कैसे प्रतिस्पर्धा करेंगे और नवाचार कैसे फलेगा-फूलेगा। यह ब्लॉग इन ऐतिहासिक मुकदमों की गहराई में उतरेगा, आरोपों, कानूनी तर्कों, वैश्विक संदर्भ और उन संभावित उपायों की पड़ताल करेगा जो हमारे डिजिटल भविष्य को हमेशा के लिए बदल सकते हैं।

भाग 1: खोज का बादशाह - यूनाइटेड स्टेट्स बनाम गूगल एलएलसी (2020) का मामला

अक्टूबर 2020 में, अमेरिकी न्याय विभाग ने 11 राज्यों के साथ मिलकर गूगल के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया, जिसमें कंपनी पर शर्मन एंटीट्रस्ट एक्ट की धारा 2 का उल्लंघन करते हुए सामान्य खोज सेवाओं और खोज विज्ञापन के बाजारों में अवैध रूप से एकाधिकार बनाए रखने का आरोप लगाया गया। यह मुकदमा यूनाइटेड स्टेट्स बनाम माइक्रोसॉफ्ट कॉर्प के बाद से सबसे महत्वपूर्ण एंटीट्रस्ट मामलों में से एक माना गया।

आरोप: एकाधिकार का जाल

सरकार का मुख्य तर्क यह था कि गूगल ने प्रतिस्पर्धा के आधार पर जीत हासिल नहीं की, बल्कि उसने अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा-विरोधी और बहिष्करणकारी रणनीतियों का इस्तेमाल किया। DOJ ने आरोप लगाया कि गूगल ने अपने खोज इंजन को उपकरणों और ब्राउज़रों पर डिफ़ॉल्ट विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए, जिससे प्रतिद्वंद्वियों के लिए बाजार में पैर जमाना लगभग असंभव हो गया।

प्रमुख आरोप निम्नलिखित समझौतों पर केंद्रित थे:

  1. ऐप्पल के साथ इंटरनेट सेवा समझौता (ISA): गूगल ने ऐप्पल को हर साल अरबों डॉलर का भुगतान किया (2022 में 20 बिलियन डॉलर से अधिक) ताकि गूगल सफारी ब्राउज़र पर डिफ़ॉल्ट खोज इंजन बना रहे। यह सौदा इतना आकर्षक था कि कोई भी प्रतिद्वंद्वी इसकी बराबरी करने का जोखिम नहीं उठा सकता था।
  2. एंड्रॉइड डिवाइस निर्माताओं के साथ मोबाइल एप्लिकेशन वितरण समझौते (MADAs): गूगल ने एंड्रॉइड ओईएम (जैसे सैमसंग और मोटोरोला) को अपने गूगल प्ले स्टोर और अन्य ऐप्स का लाइसेंस देने के लिए मजबूर किया कि वे गूगल सर्च और क्रोम ब्राउज़र को प्री-इंस्टॉल करें और उन्हें प्रमुखता से प्रदर्शित करें। इन ऐप्स को अक्सर हटाया नहीं जा सकता था।
  3. मोज़िला के साथ राजस्व साझाकरण समझौता (RSA): गूगल ने फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र पर डिफ़ॉल्ट खोज इंजन बने रहने के लिए मोज़िला को भारी भुगतान किया।

इन समझौतों के माध्यम से, गूगल ने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिका में लगभग आधे खोज प्रश्न उन एक्सेस पॉइंट्स से आते हैं जहाँ गूगल डिफ़ॉल्ट है। इस विशाल पैमाने ने गूगल को बेजोड़ मात्रा में उपयोगकर्ता डेटा तक पहुँच प्रदान की, जिसने इसके खोज एल्गोरिदम को और बेहतर बनाया और एक ऐसा दुष्चक्र बनाया जिसे कोई भी प्रतिद्वंद्वी तोड़ नहीं सका।

न्यायिक निर्णय और कानूनी तर्क की गहराइयाँ

10 सप्ताह के मुकदमे के बाद, न्यायाधीश अमित मेहता ने 5 अगस्त, 2024 को फैसला सुनाया कि गूगल ने वास्तव में एंटीट्रस्ट कानूनों का उल्लंघन किया है। अपने 275-पृष्ठ के फैसले में, न्यायाधीश मेहता ने इस बात पर जोर दिया कि गूगल के बहिष्करणकारी अनुबंधों ने प्रतिस्पर्धा को काफी हद तक नुकसान पहुँचाया।

इस मामले का कानूनी विश्लेषण एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर टिका था: कार्य-कारण (Causation) का मानक क्या होना चाहिए? गूगल ने तर्क दिया कि अभियोजकों को यह साबित करना होगा कि "अगर-मगर नहीं" (but-for) गूगल के आचरण के, प्रतिद्वंद्वी खोज इंजन (जैसे माइक्रोसॉफ्ट का बिंग) सफल हो जाते। हालांकि, न्यायाधीश मेहता ने यूनाइटेड स्टेट्स बनाम माइक्रोसॉफ्ट (2001) मामले का हवाला देते हुए एक कम कठोर मानक अपनाया। इस मानक के अनुसार, अभियोजकों को केवल यह दिखाने की आवश्यकता थी कि गूगल का आचरण "एक महत्वपूर्ण योगदान देने में यथोचित रूप से सक्षम था" (reasonably capable of contributing significantly) इसके एकाधिकार को बनाए रखने में।

आलोचकों, जैसे कि इंटरनेशनल सेंटर फॉर लॉ एंड इकोनॉमिक्स के जेफ्री माने, ने तर्क दिया है कि यह माइक्रोसॉफ्ट मामले की गलत व्याख्या थी। उनका तर्क है कि माइक्रोसॉफ्ट का हल्का कार्य-कारण मानक केवल उभरते खतरों (nascent threats) पर लागू होता है, जैसे कि 1990 के दशक में नेटस्केप नेविगेटर। गूगल के मामले में, बिंग एक स्थापित, सीधा प्रतियोगी था, न कि एक उभरता हुआ खतरा। माने का तर्क है कि अदालत को रैम्बस बनाम एफटीसी (2008) मामले में स्थापित सख्त "अगर-मगर नहीं" मानक का उपयोग करना चाहिए था। इस मानक के तहत, अदालत को यह पूछना चाहिए था: क्या बिंग की विफलता का कारण गूगल के सौदे थे, या यह उपभोक्ताओं और वितरकों द्वारा गूगल की बेहतर गुणवत्ता को पसंद करने का परिणाम था?

न्यायाधीश मेहता ने इस तर्क को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि रैम्बस का मामला अलग था और माइक्रोसॉफ्ट का मिसाल कायम है। फिर भी, यह कानूनी बहस इस बात को रेखांकित करती है कि एकाधिकार के मामलों में कार्य-कारण को साबित करना कितना जटिल है।

गुणवत्ता बनाम बहिष्करण: एक दोधारी तलवार

मुकदमे के दौरान एक और महत्वपूर्ण तर्क गूगल की गुणवत्ता के इर्द-गिर्द घूमता रहा। गूगल ने दावा किया कि उपयोगकर्ता इसे चुनते हैं क्योंकि यह सबसे अच्छा है, न कि इसलिए कि वे मजबूर हैं। विडंबना यह है कि अदालत ने इस तर्क को आंशिक रूप से स्वीकार किया, लेकिन इसे गूगल के खिलाफ ही इस्तेमाल किया।

न्यायाधीश मेहता ने पाया कि बिंग, विशेष रूप से मोबाइल पर, गूगल की गुणवत्ता के बराबर नहीं था। ऐप्पल के एक वरिष्ठ अधिकारी, एडी क्यू ने गवाही दी कि "ऐसी कोई कीमत नहीं थी जो माइक्रोसॉफ्ट कभी भी [ऐप्पल को] दे सकता था" ताकि वे बिंग पर स्विच कर सकें, क्योंकि इसमें गूगल जैसी गुणवत्ता की कमी थी।

यह गूगल के लिए एक विनाशकारी स्वीकारोक्ति थी। यदि कोई भी प्रतिद्वंद्वी गुणवत्ता के आधार पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है, तो यह तर्क देना मुश्किल है कि गूगल के बहिष्करणकारी सौदों ने उन्हें बाजार से बाहर रखा। ग्रेग वर्डेन जैसे विश्लेषकों ने बताया कि अगर सरकार के पैमाने और गुणवत्ता के तर्कों को पूरी तरह से मान लिया जाए, तो इसका मतलब है कि प्रतिद्वंद्वी खोज इंजन कभी भी गूगल के लिए एक वास्तविक खतरा नहीं थे, और इसलिए, गूगल के आचरण ने इसके एकाधिकार को "बनाए नहीं रखा"।

दूसरे शब्दों में, अदालत ने एक विरोधाभास पैदा किया: यह माना गया कि गूगल के सौदे प्रतिस्पर्धा-विरोधी थे, लेकिन यह भी स्वीकार किया कि प्रतिद्वंद्वी वैसे भी प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ थे। यह कानूनी उलझन अपील प्रक्रिया के दौरान एक केंद्रीय मुद्दा बनने की संभावना है और यह दिखाती है कि कैसे प्रमुख तकनीकी कंपनियों के मामले पारंपरिक एंटीट्रस्ट सिद्धांतों को चुनौती देते हैं।

भाग 2: विज्ञापन का जाल - यूनाइटेड स्टेट्स बनाम गूगल एलएलसी (2023) और एडटेक एकाधिकार

जबकि खोज का मुकदमा गूगल के सबसे प्रसिद्ध उत्पाद पर केंद्रित था, जनवरी 2023 में शुरू हुआ दूसरा मुकदमा उसके विशाल और जटिल विज्ञापन प्रौद्योगिकी (एडटेक) व्यवसाय पर लक्षित है - वह इंजन जो गूगल के राजस्व का 80% से अधिक उत्पन्न करता है। DOJ और 17 राज्यों ने गूगल पर डिजिटल विज्ञापन बाजार के हर पहलू पर एकाधिकार करने का आरोप लगाया है, और वे कंपनी के विज्ञापन व्यवसाय को तोड़ने की माँग कर रहे हैं।

एडटेक स्टैक को समझना

यह समझने के लिए कि आरोप कितने गंभीर हैं, पहले यह समझना आवश्यक है कि डिजिटल विज्ञापन कैसे काम करता है। यह प्रक्रिया "एडटेक स्टैक" नामक एक जटिल प्रणाली के माध्यम से होती है, जो डिजिटल विज्ञापन की आपूर्ति श्रृंखला है।

  1. प्रकाशक (Publishers): ये वेबसाइट और ऐप मालिक हैं जिनके पास विज्ञापन स्थान ("इन्वेंट्री") है जिसे वे बेचना चाहते हैं।
  2. विज्ञापनदाता (Advertisers): ये वे व्यवसाय हैं जो अपने उत्पादों या सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए विज्ञापन स्थान खरीदना चाहते हैं।
  3. आपूर्ति-पक्ष प्लेटफॉर्म (SSPs): ये उपकरण प्रकाशकों को अपनी इन्वेंट्री को स्वचालित रूप से बेचने में मदद करते हैं।
  4. माँग-पक्ष प्लेटफॉर्म (DSPs): ये उपकरण विज्ञापनदाताओं को कई प्रकाशकों से इन्वेंट्री खरीदने में मदद करते हैं।
  5. विज्ञापन एक्सचेंज (Ad Exchange): यह एक डिजिटल बाज़ार है जहाँ SSPs और DSPs वास्तविक समय में नीलामी (real-time bidding) के माध्यम से विज्ञापन इन्वेंट्री खरीदते और बेचते हैं।

सरकार का आरोप है कि गूगल ने इस स्टैक के हर महत्वपूर्ण हिस्से पर नियंत्रण कर लिया है।

आरोप: पिच, बल्लेबाज और अंपायर - सब कुछ गूगल

DOJ का तर्क है कि गूगल ने 15 वर्षों के दौरान एक व्यवस्थित अभियान के माध्यम से एडटेक बाजार पर कब्जा कर लिया।

  • रणनीतिक अधिग्रहण: गूगल ने 2007 में डबलक्लिक को 3.1 बिलियन डॉलर में खरीदा, जो उस समय का एक प्रमुख विज्ञापन सर्वर था। इसने गूगल को प्रकाशक विज्ञापन सर्वर बाजार में 90% से अधिक हिस्सेदारी दी। बाद में, इसने एडमेल्ड और इनवाइट मीडिया जैसी कंपनियों को खरीदकर अपने नियंत्रण को और मजबूत किया।
  • वर्टिकल इंटीग्रेशन और स्व-वरीयता: गूगल अब एडटेक स्टैक के सभी पक्षों का प्रतिनिधित्व करता है। इसका गूगल एड्स (पहले एडवर्ड्स) विज्ञापनदाताओं (खरीदारों) का प्रतिनिधित्व करता है, इसका गूगल एड मैनेजर (डबलक्लिक फॉर पब्लिशर्स या डीएफपी) प्रकाशकों (विक्रेताओं) का प्रतिनिधित्व करता है, और इसका AdX सबसे बड़ा विज्ञापन एक्सचेंज है। आलोचकों का कहना है कि यह ऐसा है जैसे "गोल्डमैन सैक्स या सिटीबैंक न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के मालिक हों"। इस स्थिति ने गूगल को अपने स्वयं के उत्पादों को अनुचित लाभ देने, प्रतिस्पर्धियों की लागत बढ़ाने और नीलामी में हेरफेर करने की अनुमति दी।
  • प्रतिस्पर्धा का दमन: प्रकाशकों ने "हेडर बिडिंग" नामक एक नवाचार विकसित किया ताकि वे गूगल के एक्सचेंज को दरकिनार कर सकें और कई एक्सचेंजों से एक साथ बोलियाँ प्राप्त कर सकें, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। 2016 तक, 70% प्रमुख प्रकाशकों ने इसे अपना लिया था। DOJ का आरोप है कि गूगल ने इस खतरे को खत्म करने के लिए कई कदम उठाए, जिसमें तकनीकी रूप से हेडर बिडिंग को अपने त्वरित मोबाइल पेज (AMP) प्रारूप के साथ असंगत बनाना और प्रकाशकों को दंडित करना शामिल था जो AMP का उपयोग नहीं करते थे।

'जेडी ब्लू': फेसबुक के साथ गुप्त समझौता

शायद सबसे सनसनीखेज आरोप गूगल और फेसबुक के बीच "जेडी ब्लू" नामक एक गुप्त समझौते से संबंधित है। DOJ का आरोप है कि जब फेसबुक ने 2017 में हेडर बिडिंग का समर्थन करने की घोषणा की, तो गूगल ने इसे एक बड़े खतरे के रूप में देखा। एक सीधी प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के बजाय, दोनों कंपनियों ने कथित तौर पर एक सौदा किया।

इस सौदे के तहत, फेसबुक हेडर बिडिंग के लिए अपने समर्थन को कम करने पर सहमत हुआ, और बदले में, गूगल ने फेसबुक को अपने विज्ञापन नीलामियों में विशेष लाभ दिए, जिसमें जानकारी, गति और एक निश्चित जीत दर शामिल थी। यह अनिवार्य रूप से एक बाजार-विभाजन समझौता था, जो एंटीट्रस्ट कानून का एक per se (स्वयं में) उल्लंघन है। इस समझौते ने गूगल के सबसे बड़े संभावित प्रतियोगी को बेअसर कर दिया और एडटेक बाजार पर उसकी पकड़ को और मजबूत कर दिया।

भाग 3: पत्रकारिता पर हमला और छोटे व्यवसायों का भविष्य

गूगल के खिलाफ एंटीट्रस्ट मुकदमों के केंद्र में सिर्फ कानूनी और आर्थिक सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र की एक आधारशिला: एक स्वतंत्र और विविध प्रेस, का अस्तित्व भी दाँव पर है। दशकों से, समाचार संगठनों ने उच्च गुणवत्ता वाली पत्रकारिता को निधि देने के लिए विज्ञापन राजस्व पर बहुत अधिक भरोसा किया है। लेकिन जैसे-जैसे विज्ञापन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित हुआ है, स्थानीय समाचार पत्र विशेष रूप से तबाह हो गए हैं।

'समाचार रेगिस्तान' का उदय

शिकायतें, जैसे कि सवाना पब्लिशिंग कंपनी बनाम गूगल, इस विनाशकारी प्रभाव को उजागर करती हैं। 2006 से, अमेरिकी समाचार पत्रों का विज्ञापन राजस्व $49 बिलियन से घटकर 2017 में $16.5 बिलियन हो गया है - 50% से अधिक की गिरावट। यह राजस्व सीधे गूगल की तिजोरी में चला गया, जिसका विज्ञापन राजस्व इसी अवधि में तेजी से बढ़ा।

इस राजस्व हानि के परिणाम गंभीर रहे हैं:

  • नौकरियों का नुकसान: 1990 से 2016 के बीच लगभग 30,000 समाचार पत्र की नौकरियाँ खत्म हो गईं, जो उद्योग में 60% की गिरावट है। 2008 से 2019 तक, न्यूज़रूम कर्मचारियों की संख्या आधी हो गई।
  • समाचार पत्रों का बंद होना: 2004 के बाद से अमेरिका में लगभग 1,800 समाचार पत्र बंद हो गए हैं। इसके परिणामस्वरूप, 200 काउंटियों में कोई स्थानीय समाचार पत्र नहीं है, और आधे से अधिक काउंटियों में केवल एक है। इन क्षेत्रों को "समाचार रेगिस्तान" (news deserts) के रूप में जाना जाता है।

यह गिरावट सिर्फ एक व्यावसायिक समस्या नहीं है; यह एक नागरिक संकट है। स्थानीय पत्रकारिता समुदायों को स्वस्थ रखती है, भ्रष्टाचार को उजागर करती है, और नागरिकों को सूचित रखती है। गूगल और फेसबुक जैसे प्लेटफार्मों के उदय ने विश्वसनीय समाचार स्रोतों के पतन में योगदान दिया है, जिससे एक ऐसा वातावरण बना है जहाँ गलत सूचनाएँ आसानी से फैल सकती हैं।

एंटीट्रस्ट मुकदमों का तर्क है कि यह गिरावट एक प्राकृतिक बाजार बदलाव का परिणाम नहीं है, बल्कि गूगल द्वारा डिजिटल विज्ञापन बाजार के अवैध एकाधिकार का सीधा परिणाम है। गूगल द्वारा विज्ञापनदाताओं और प्रकाशकों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में खुद को स्थापित करके, कंपनी विज्ञापन डॉलर का एक बड़ा हिस्सा (कथित तौर पर हर डॉलर में से कम से कम 30 सेंट) ले लेती है जो अन्यथा उन समाचार संगठनों को जाता जो सामग्री का उत्पादन करते हैं।

छोटे व्यवसायों के लिए इसका क्या मतलब है?

छोटे व्यवसायों के लिए, गूगल के खिलाफ मामलों के परिणाम मिश्रित हो सकते हैं। वे गूगल विज्ञापनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं ताकि वे ग्राहकों तक पहुँच सकें, और कोई भी बड़ा बदलाव उनके संचालन को बाधित कर सकता है।

संभावित लाभ:

  • कम विज्ञापन लागत: यदि DOJ सफल होता है और अधिक प्रतिस्पर्धा को बाजार में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है, तो विज्ञापन की कीमतें गिर सकती हैं। छोटे व्यवसाय अपने सीमित बजट को अधिक प्रभावी ढंग से आवंटित करने में सक्षम हो सकते हैं।
  • अधिक विकल्प और नवाचार: गूगल के एकाधिकार को तोड़ने से नए और अभिनव विज्ञापन प्लेटफार्मों का उदय हो सकता है जो बेहतर लक्ष्यीकरण, अधिक पारदर्शी मूल्य निर्धारण और विविध विज्ञापन प्रारूप प्रदान करते हैं।
  • बेहतर डेटा गोपनीयता: सख्त नियम गूगल को उपयोगकर्ता डेटा को कैसे संभालता है, इसे बदलने के लिए मजबूर कर सकते हैं, जिससे विज्ञापनदाताओं को अधिक पारदर्शिता और नियंत्रण मिल सकता है।

संभावित चुनौतियाँ:

  • बढ़ी हुई जटिलता: एक प्रमुख खिलाड़ी के बजाय कई प्लेटफार्मों के साथ काम करने का मतलब है कि छोटे व्यवसायों को कई अभियानों, बजटों और एनालिटिक्स प्रणालियों का प्रबंधन करना होगा। इससे प्रबंधन लागत और समय का निवेश बढ़ सकता है।
  • विश्लेषण की आवश्यकता: व्यवसायों को यह निर्धारित करने के लिए विभिन्न प्लेटफार्मों पर प्रदर्शन की लगातार तुलना करने की आवश्यकता होगी कि उनका पैसा कहाँ सबसे अच्छा खर्च हो रहा है।
  • प्रारंभिक अस्थिरता: जैसे ही बाजार समायोजित होता है, विज्ञापन मूल्य निर्धारण और प्रभावशीलता में अस्थिरता की अवधि हो सकती है। छोटे व्यवसायों को सही मिश्रण खोजने के लिए एक परीक्षण-और-त्रुटि चरण का सामना करना पड़ सकता है।

अंततः, जो छोटे व्यवसाय इन संभावित परिवर्तनों के लिए तैयार रहते हैं, वैकल्पिक प्लेटफार्मों की खोज करते हैं, और एक लचीली रणनीति बनाए रखते हैं, वे इस नए प्रतिस्पर्धी परिदृश्य में पनपने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में होंगे।

भाग 4: वैश्विक प्रतिक्रिया - यूरोपीय संघ और उससे आगे की लड़ाई

संयुक्त राज्य अमेरिका में गूगल के खिलाफ चल रहे मुकदमे अकेले नहीं हैं। वास्तव में, वे दुनिया भर में तकनीकी दिग्गजों पर बढ़ती नियामक जाँच की एक बड़ी लहर का हिस्सा हैं। यूरोपीय संघ (EU) इस लड़ाई में सबसे आगे रहा है, उसने गूगल पर €8 बिलियन से अधिक का जुर्माना लगाया है और ऐसे नियम लागू किए हैं जो वैश्विक तकनीकी विनियमन के लिए एक मॉडल बन रहे हैं।

यूरोपीय संघ की जाँच

2010 से, यूरोपीय आयोग (EC) ने गूगल के खिलाफ कई एंटीट्रस्ट शिकायतें दर्ज की हैं, जिनमें से तीन प्रमुख मामलों में औपचारिक आरोप और भारी जुर्माना लगाया गया है:

  1. गूगल शॉपिंग (2017): EC ने गूगल पर €2.4 बिलियन का जुर्माना लगाया क्योंकि उसने अपने खोज परिणामों में अपनी तुलनात्मक खरीदारी सेवा "गूगल शॉपिंग" को अवैध रूप से लाभ पहुँचाया था। आयोग ने पाया कि गूगल ने अपनी सेवा को प्रमुखता से प्रदर्शित किया जबकि प्रतिस्पर्धी सेवाओं को अपने एल्गोरिदम के माध्यम से पदावनत (demote) कर दिया। यह स्व-वरीयता (self-preferencing) का एक क्लासिक मामला था, और अदालत ने फैसला सुनाया कि यह उपभोक्ताओं को वास्तविक प्रतिस्पर्धा से वंचित करता है। गूगल ने अपील की, लेकिन 2021 में EU के जनरल कोर्ट ने बड़े पैमाने पर इस फैसले को बरकरार रखा।
  2. एंड्रॉइड (2018): EC ने गूगल पर €4.3 बिलियन का अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना लगाया, क्योंकि उसने अपने एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रभुत्व का दुरुपयोग किया था। आयोग ने पाया कि गूगल ने स्मार्टफोन निर्माताओं को गूगल के ऐप्स, विशेष रूप से गूगल सर्च और क्रोम ब्राउज़र, को प्री-इंस्टॉल करने के लिए मजबूर किया, यदि वे गूगल प्ले स्टोर तक पहुँच चाहते थे। गूगल ने निर्माताओं को एंड्रॉइड के प्रतिस्पर्धी संस्करणों (forked versions) पर चलने वाले उपकरण बेचने से भी रोका। इस मामले ने गूगल को यूरोप में अपनी एंड्रॉइड लाइसेंसिंग प्रथाओं को बदलने के लिए मजबूर किया, जिसमें प्ले स्टोर के लिए एक लाइसेंसिंग शुल्क लेना और उपयोगकर्ताओं को ब्राउज़र और खोज इंजन का विकल्प देना शामिल है।
  3. एडसेंस (2019): गूगल पर तीसरे पक्ष की वेबसाइटों के साथ अपने एडसेंस विज्ञापन सेवा से संबंधित प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं के लिए €1.49 बिलियन का जुर्माना लगाया गया था। EC ने पाया कि गूगल ने प्रकाशकों पर प्रतिबंधात्मक खंड लगाए थे, जो उन्हें प्रतिस्पर्धियों से खोज विज्ञापन प्रदर्शित करने से रोकते थे। यह व्यवहार, आयोग ने निष्कर्ष निकाला, प्रतिस्पर्धियों को बाहर करने और विज्ञापनदाताओं और उपभोक्ताओं के लिए पसंद को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

इन मामलों के अलावा, EU ने गूगल द्वारा फिटबिट के अधिग्रहण और उसके एडटेक प्रथाओं की भी जाँच की है।

डिजिटल बाजार अधिनियम (DMA): एक नया प्रतिमान

इन व्यक्तिगत मामलों से परे, EU ने डिजिटल मार्केट्स एक्ट (DMA) के साथ एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है, जो सितंबर 2022 में कानून बन गया। DMA का उद्देश्य "गेटकीपर" (gatekeepers) कहे जाने वाले बड़े ऑनलाइन प्लेटफार्मों की बाजार शक्ति को रोकना है। यह कानून गेटकीपर्स को विशिष्ट नियमों का पालन करने के लिए मजबूर करता है, जैसे:

  • उपयोगकर्ताओं को प्री-इंस्टॉल्ड ऐप्स को हटाने की अनुमति देना।
  • अपने स्वयं के उत्पादों को दूसरों पर वरीयता देने से बचना (स्व-वरीयता पर प्रतिबंध)।
  • प्रतिस्पर्धियों को अपने प्लेटफार्मों के साथ इंटरऑपरेट करने की अनुमति देना।
  • विज्ञापन उद्देश्यों के लिए विभिन्न सेवाओं से व्यक्तिगत डेटा को संयोजित करने से पहले सहमति प्राप्त करना।

DMA का उल्लंघन करने पर कंपनी के वैश्विक वार्षिक राजस्व का 10% तक जुर्माना हो सकता है। यह कानून संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है जो बिग टेक को विनियमित करने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं।

दुनिया भर में कार्रवाई

गूगल के खिलाफ एंटीट्रस्ट कार्रवाई EU और अमेरिका तक ही सीमित नहीं है। Strand Consult द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर में गूगल के खिलाफ 100 से अधिक मामले या जाँचें चल रही हैं। भारत, दक्षिण कोरिया, तुर्की, रूस, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों ने गूगल के एंड्रॉइड, गूगल प्ले स्टोर और खोज प्रथाओं की जाँच शुरू कर दी है।

यह वैश्विक दबाव दर्शाता है कि दुनिया भर की सरकारें मान रही हैं कि एक या दो कंपनियों के हाथ में इतनी अधिक डिजिटल शक्ति का केंद्रीकरण अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए एक जोखिम है। जबकि प्रत्येक देश का दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकता है, अंतर्निहित संदेश स्पष्ट है: गूगल और अन्य तकनीकी दिग्गजों के लिए अनियंत्रित विकास और प्रभुत्व का युग समाप्त हो सकता है।

भाग 5: समाधान क्या है? गूगल को तोड़ने की बहस

चूंकि अमेरिकी अदालत ने गूगल को खोज में एक अवैध एकाधिकारवादी घोषित कर दिया है, सबसे महत्वपूर्ण सवाल अब यह है: इसका समाधान क्या है? अमेरिकी न्याय विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि वे केवल जुर्माने या सतही बदलावों से संतुष्ट नहीं होंगे। वे गूगल के व्यवसाय में संरचनात्मक परिवर्तनों की माँग कर रहे हैं, जिसमें कंपनी के कुछ हिस्सों को तोड़ने की संभावना भी शामिल है।

अदालतों के पास एंटीट्रस्ट उल्लंघनों को ठीक करने के लिए व्यापक विवेक है, जिसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को बहाल करना, भविष्य के उल्लंघनों को रोकना और एकाधिकारवादी को उसके अवैध लाभों से वंचित करना है। समाधान आम तौर पर दो श्रेणियों में आते हैं: व्यवहारिक और संरचनात्मक।

व्यवहारिक बनाम संरचनात्मक समाधान

  • व्यवहारिक समाधान (Behavioral Remedies): ये नियम हैं जो एक कंपनी को कुछ प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरणों में शामिल होने से रोकते हैं। उदाहरण के लिए, गूगल को डिफ़ॉल्ट खोज इंजन बनने के लिए ऐप्पल जैसी कंपनियों को भुगतान करने से रोकना। हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि व्यवहारिक समाधान अक्सर अप्रभावी होते हैं, क्योंकि कंपनियों को उन्हें दरकिनार करने के तरीके मिल जाते हैं और उन्हें निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है। EU में गूगल के "चॉइस स्क्रीन" का अनुभव, जिसने गूगल के बाजार हिस्सेदारी पर बहुत कम प्रभाव डाला है, इस दृष्टिकोण का समर्थन करता है।
  • संरचनात्मक समाधान (Structural Remedies): ये समाधान कंपनी की संरचना को ही बदल देते हैं ताकि प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण के लिए प्रोत्साहन को समाप्त किया जा सके। इसका सबसे चरम रूप विभाजन (divestiture) या ब्रेकअप है, जिसमें कंपनी को अपनी कुछ व्यावसायिक इकाइयों को बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, स्टैंडर्ड ऑयल और एटीएंडटी जैसे एकाधिकारों को तोड़ने के लिए संरचनात्मक समाधानों का उपयोग किया गया है।

न्याय विभाग के प्रस्तावित समाधान

DOJ और अमेरिकन इकोनॉमिक लिबर्टीज प्रोजेक्ट जैसे हिमायती समूहों ने गूगल के खोज एकाधिकार को संबोधित करने के लिए कई संरचनात्मक और व्यवहारिक समाधानों का प्रस्ताव दिया है:

  1. एंड्रॉइड और क्रोम का विभाजन: DOJ का सबसे महत्वाकांक्षी प्रस्ताव गूगल को अपने एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम और क्रोम वेब ब्राउज़र को बेचने के लिए मजबूर करना है। तर्क यह है कि ये गूगल के खोज इंजन के लिए महत्वपूर्ण वितरण चैनल हैं। उन्हें स्वतंत्र कंपनियों में बदलने से गूगल को अपने खोज इंजन को वरीयता देने का प्रोत्साहन समाप्त हो जाएगा और अन्य खोज इंजनों को इन प्लेटफार्मों पर डिफ़ॉल्ट स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करने का एक उचित अवसर मिलेगा।
  2. डिफ़ॉल्ट प्लेसमेंट के लिए भुगतान पर प्रतिबंध: एक अधिक सीधा समाधान गूगल को किसी भी डिवाइस या ब्राउज़र पर डिफ़ॉल्ट या प्राथमिकता प्लेसमेंट के लिए भुगतान करने से रोकना होगा। इससे ऐप्पल जैसी कंपनियों को अन्य खोज इंजनों से सौदे करने की स्वतंत्रता मिलेगी, जिससे बिंग या डकडकगो जैसे प्रतिद्वंद्वियों को पैमाने हासिल करने में मदद मिल सकती है।
  3. अनिवार्य डेटा साझाकरण और इंटरऑपरेबिलिटी: एक और प्रस्ताव गूगल को अपने कुछ तकनीकी संपत्तियों तक प्रतिद्वंद्वियों को पहुँच प्रदान करने के लिए मजबूर करना है। इसमें शामिल हो सकते हैं:
    • वेब इंडेक्स और एल्गोरिदम का लाइसेंस: गूगल को अपने विशाल वेब इंडेक्स और रैंकिंग एल्गोरिदम को उचित, तर्कसंगत और गैर-भेदभावपूर्ण (FRAND) शर्तों पर लाइसेंस देने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इससे नए खोज इंजन गूगल के बुनियादी ढाँचे पर अपने स्वयं के अनूठे उपयोगकर्ता अनुभव बना सकेंगे।
    • खोज प्रश्नों को साझा करना: गूगल को अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ समग्र, अनाम खोज डेटा साझा करने की आवश्यकता हो सकती है ताकि वे अपने स्वयं के एल्गोरिदम को बेहतर बना सकें, जैसा कि EU के डिजिटल मार्केट्स एक्ट के तहत आवश्यक है।

गूगल की प्रतिक्रिया और संभावित परिणाम

गूगल ने इन प्रस्तावों को "कट्टरपंथी" (radical) और अनावश्यक बताया है। कंपनी का तर्क है कि इस तरह के समाधान नवाचार को धीमा कर देंगे, विज्ञापन शुल्क बढ़ा देंगे, और सुरक्षा को खतरे में डाल देंगे। गूगल का कहना है कि एक विभाजन क्रोम या एंड्रॉइड जैसी मुफ्त, उच्च-गुणवत्ता वाली सेवाओं को "तोड़" देगा।

Reddit जैसे प्लेटफॉर्म पर निवेशकों और विश्लेषकों के बीच भी बहस छिड़ी हुई है। कुछ का मानना है कि एक ब्रेकअप स्टैंडर्ड ऑयल के समान शेयरधारक मूल्य को अनलॉक कर सकता है, जहाँ अलग-अलग हिस्सों का कुल मूल्य पूरे से अधिक हो गया। दूसरे तर्क देते हैं कि गूगल के उत्पाद इतने आपस में जुड़े हुए हैं कि उन्हें अलग करने से मूल्य नष्ट हो जाएगा, क्योंकि प्रत्येक उप-कंपनी के पास कम डेटा होगा, जिससे विज्ञापन कम प्रभावी होंगे और कई मुफ्त सेवाएँ समाप्त हो जाएँगी।

अंतिम परिणाम जो भी हो, यह स्पष्ट है कि यथास्थिति अस्वीकार्य है। अदालत को एक ऐसा समाधान तैयार करना होगा जो प्रतिस्पर्धा को प्रभावी ढंग से बहाल करे बिना उन उत्पादों को नष्ट किए जिन पर लाखों लोग भरोसा करते हैं। संभावना है कि अंतिम उपाय में व्यवहारिक और संरचनात्मक दोनों तत्वों का मिश्रण शामिल होगा। लेकिन एक बात निश्चित है: गूगल के लिए एकाधिकार के खेल के नियम बदल रहे हैं।

निष्कर्ष: डिजिटल चौराहे पर एक ऐतिहासिक क्षण

यूनाइटेड स्टेट्स बनाम गूगल के मुकदमे केवल एक कंपनी के बारे में नहीं हैं; वे 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था के भविष्य के लिए एक लड़ाई हैं। दशकों से, एक उदारवादी एंटीट्रस्ट दृष्टिकोण ने बड़ी तकनीकी कंपनियों को अभूतपूर्व शक्ति और प्रभाव जमा करने की अनुमति दी है। अब, नियामकों, सांसदों और जनता के बीच एक बढ़ती हुई सहमति है कि इस शक्ति को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।

न्यायाधीश मेहता का फैसला कि गूगल ने खोज में अपने एकाधिकार को अवैध रूप से बनाए रखा है, इस नई दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह दर्शाता है कि अमेरिकी अदालतें सबसे शक्तिशाली कंपनियों को भी जवाबदेह ठहराने के लिए तैयार हैं। अब ध्यान समाधान चरण पर है, जहाँ अदालत यह तय करेगी कि गूगल के प्रभुत्व को कैसे नियंत्रित किया जाए। चाहे वह कंपनी का विभाजन हो, इसके बहिष्करणकारी अनुबंधों पर प्रतिबंध हो, या डेटा साझा करने की आवश्यकता हो, परिणाम डिजिटल परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल देंगे।

इसी तरह, गूगल के एडटेक साम्राज्य पर चल रहा मुकदमा डिजिटल विज्ञापन के जटिल और अपारदर्शी अंडरबेली पर प्रकाश डालता है - एक ऐसा बाजार जिसने समाचार उद्योग को खोखला कर दिया है और छोटे व्यवसायों को एक ही प्रमुख खिलाड़ी की दया पर छोड़ दिया है।

यह लड़ाई लंबी और कठिन होगी। गूगल निस्संदेह इन फैसलों के खिलाफ अपील करेगा, और अंतिम समाधान तक पहुँचने में वर्षों लग सकते हैं। लेकिन एक बात स्पष्ट है: यथास्थिति अब टिकाऊ नहीं है। ये मुकदमे एक स्पष्ट संदेश देते हैं कि नवाचार को बढ़ावा देने, उपभोक्ताओं की रक्षा करने और एक जीवंत लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए एक प्रतिस्पर्धी बाजार आवश्यक है। जैसे-जैसे हम इस डिजिटल चौराहे पर खड़े हैं, इन मामलों के परिणाम यह निर्धारित करेंगे कि क्या इंटरनेट एक खुला और प्रतिस्पर्धी स्थान बना रहेगा या कुछ शक्तिशाली गेटकीपर्स के नियंत्रण में रहेगा। दुनिया देख रही है।

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